आध्यात्मिक विद्या के उदगाता संत श्री आसाराम जी महाराज

 

प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद संत श्री आसाराम जी महाराज आज समग्र विश्व की चेतना के साथ एकात्मकता साधे हुए एक ऐसे ब्रह्मज्ञानी महापुरूष हैं कि जिनके बारे में कुछ लिखना कलम को शर्मिन्दा करना है। पूज्यश्री के लिए यह कहना कि उनका जन्म सिन्ध के नवाब जिले के बेराणी नामक गाँव में ई.. 1941 में वि.सं. 1998 चैत वद 6 को हुआ थायह कहना कि उनके पिताश्री बड़े जमींदार थेयह कहना कि उन्होंने बचपन से साधना शुरू की थी और करीब तेईस साल की उम्र में उन्होंने आत्म-साक्षात्कार किया था  इत्यादि सब अपने मन को फुसलाने की कहानियाँ मात्र हैं। उनके विषय में कुछ भी कहना बहुत ज़्यादती है। मौन ही यहाँ परम भाषण है। सारे विश्व की चेतना के साथ जिनकी एकतानता है उनको भला किस रीति से स्थूल सम्बन्धों और परिवर्तनशील क्रियाओं के साथ बांधा जाये?

आज अमदावाद से करीब तीन-चार कि.मी. उत्तर में पवित्र सलिला साबरमति के किनारे ऋषि-मुनियों की तपोभूमि में धवल वस्त्रधारी परम पूज्यपाद संतश्री लाखों-लाखों मनुष्यों के जीवनरथ के पथ-प्रदर्शक बने हुए हैं। कुछ ही साल पहले साबरमति की जो कोतरे डरावनी और भयावह थींआज वही भूमि लाखों लोगों के लिए परम आश्रय और आनंददायी तीर्थभूमि बन चुकी है। हर रविवार और बुधवार को हजारों लोग आश्रम में आकर ब्रह्मनन्द में मस्त संतश्री के मुखारविंद से निसृत अमृत-वर्षा का लाभ पाते हैं। ध्यान और सत्संग का अमृतमय प्रसाद पाते हैं। पूज्यश्री की पावन कुटीर के सामने स्थित मनोकामनाओं को सिद्ध करने वाले कल्पवृक्ष समान बड़ बादशाह की परिक्रमा करते हैं ओर एक सप्ताह के लिए एक अदम्य उत्साह और आनन्द भीतर भरकर लौट जाते हैं।

कुछ साधक पूज्यश्री के पावन सान्निध्य में आत्मोथान की ओर अग्रसर होते हुए स्थायी रूप से आश्रम में ही रहते हैं। इस आश्रम से थोड़े ही दूरी पर स्थित महिला आश्रम में पूज्यश्री प्रेरणा से और पूज्य माता जी के संचालन में रहकर कुछ साधिकाएँ आत्मोथान के मार्ग पर चल रही हैं।

अमदावाद और सूरत के अलावा दिल्ली, आगरावृन्दावन, हृषिकेश, इन्दौर, भोपाल, उज्जैन, रतलामजयपुर, उदयपुरपुष्कर-अजमेर, जोधपुरआमेट, सुमेरपरु, सागवाड़ा, राजकोट, भावनगर, हिम्मतनगर, विसनगरलुणावाड़ा, वलसाड़वापी, उल्हासनगर, औरंगाबादप्रकाशा, नाशिक एवं छोटे-मोटे कई स्थानों में भी मनोरम्य आश्रम बन चुके हैं और लाखों-लाखों लोग उनसे लाभान्वित हो रहे हैं। हर साल इन आश्रमों में मुख्य चार ध्यान योग साधना शिविर होते हैं। देश-विदेश के कई साधक-साधिकाएँ इन शिविरों में सम्मिलित होकर आध्यात्मिक साधना के राजमार्ग पर चल रहे हैं। उनकी संख्या दिनोदिन विशाल हो रही है। पूज्यश्री का प्रेमआनन्द, उत्साह और आश्वासन से भरा प्रेरक मार्गदर्शन एवं स्नेहपूर्ण सान्निध्य उनके जीवन को पुलकित कर रहा है।

किसी को पूज्यश्री की किताब मिल जाती हैकिसी को पूज्यश्री के प्रवचन की टेप सुनने को मिल जाती है, किसी को टी.वी. एवं चैनलों पर पूज्यश्री का दर्शन-सत्संग मिल जाता है. किसी को पूज्यश्री का कोई शिष्य, भक्त मिल जाता है और कोई श्रद्धावान तो पूज्यश्री का केवल नाम सुनकर ही आश्रम में चला जाता है और पूज्यश्री का आत्मिक प्रेम पाकर अनन्त विश्वचेतना के साथ तार जोड़ने का सदभागी होता है। वह भी आध्यात्मिक साधना का मार्ग खुल जाने से आनन्द से भर जाता है।

पूज्यश्री कहते हैं- तुम अपने को दीन-हीन कभी मत समझो। तुम आत्मस्वरूप से संसार की सबसे बड़ी सत्ता हो। तुम्हारे पैरों तले सूर्य और चन्द्र सहित हजारों पृथ्वियाँ दबी हुई हैं। तुम्हें अपने वास्तविक स्वरूप में जागने मात्र की देर है। अपने जीवन को संयम-नियम और विवेक वैराग्य से भरकर आत्माभिमुख बनाओ। अपने जीवन में ज़रा ध्यान की झलक लेकर तो देखो! आत्मदेव परमात्मा की ज़री झाँकी करके तो देखो! बसफिर तो तुम अखण्ड ब्रह्माण्ड के नायक हो ही। किसने तुम्हें दीन-हीन बनाए रखा है? किसने तुम्हें अज्ञानी और मूढ़ बनाए रखा है? मान्यताओं ने ही ना...? तो छोड़ दो उन दुःखद मान्यताओं को। जाग जाओ अपने स्वरूप में। फिर देखो, सारा विश्व तुम्हारी सत्ता के आगे झुकने को बाध्य होता है कि नहीं? तुमको सिर्फ जगना है.... बस। इतना ही काफी है। तुम्हारे तीव्र पुरूषार्थ और सदगुरू के कृपा-प्रसाद से यह कार्य सिद्ध हो जाता है।

कुण्डलिनी प्रारम्भ में क्रियाएँ करके अन्नमय कोष को शुद्ध करती है। तुम्हारे शरीर को आवश्यक हों ऐसे आसन, प्राणायाम, मुद्राएँ आदि अपने आप होने लगते हैं। अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष की यात्रा करते हुए कुण्डलिनी जब आनन्दमय कोष में पहुँचती है तब असीम आनन्द की अनुभूति होने लगती है। तमाम शक्तियाँ, सिद्धियाँ, सामर्थ्य साधक में प्रकट होने लगता है। कुण्डलिनी जगते ही बुरी आदतें और व्यसन दूर होने लगते हैं।

इस योग को सिद्धयोग भी कहा जाता है। आनन्दमय कोष से भी आगे गुणातीत अवस्था करने के लिए इस सिद्धयोग का उपयोग हो सकता है तथा आत्मज्ञान पाकर जीवन्मुक्त के ऊँचे शिखर पर पहुँचने के लिए योगासन सहाय रूप हो सकते हैं।

- श्री योग वेदान्त सेवा समिति

अमदावाद आश्रम


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