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7 CHAKRAS IN BODY चक्रः Hindi

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चक्रः   चक्र ,   आध्यात्मिक शक्तियों के केन्द्र हैं। स्थूल शरीर में चर्मचक्षु से वे दिखते नहीं ,  क्योंकि वे हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित होते हैं। फिर भी स्थूल शरीर के ज्ञानतन्तु , स्नायु केन्द्र के साथ उनकी समानता जोड़कर उनका निर्देश किया जाता है। हमारे शरीर में ऐसे सात चक्र मुख्य हैं। 1. मूलाधारः गुदा के पास मेरूदण्ड के आखिरी मनके के पास होता है। 2. स्वाधिष्ठानः जननेन्द्रिय से ऊपर और नाभि से नीचे के भाग में होता है। 3. मणिपुरः नाभिकेन्द्र में होता है। 4. अनाहतः हृदय में होता है। 5. विशुद्धः कण्ठ में होता है। 6. आज्ञाचक्रः दो भौहों के बीच में होता है। 7. सहस्रारः मस्तिष्क के ऊपर के भाग में जहाँ चोटी रखी जाती है ,   वहाँ होता है। नाड़ीः   प्राण वहन करने वाली बारीक नलिकाओं को नाड़ी कहते हैं। उनकी संख्या 72000 बतायी जाती है। इड़ा ,  पिंगला और सुषुम्ना ये तीन मुख्य हैं। उनमें भी सुषुम्ना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

Instruction for Yoga (योग के लिए निर्देश) Hindi

  1.        भोजन के छः घण्टे बाद ,   दूध पीने के दो घण्टे बाद या बिल्कुल खाली पेट ही आसन करें। 2.        शौच - स्नानादि से निवृत्त होकर आसन किये जाये तो अच्छा है। 3.        श्वास मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चाहिए। 4.        गरम कम्बल ,  टाट या ऐसा ही कुछ बिछाकर आसन करें। खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाये आसन कभी न करें ,   जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्युत - प्रवाह नष्ट न हो जायें। 5.        आसन करते समय शरीर के साथ ज़बरदस्ती न करें। आसन कसरत नहीं है। अतः धैर्यपूर्वक आसन करें। 6.        आसन करने के बाद ठंड में या तेज हवा में न निकलें। स्नान करना हो तो थोड़ी देर बाद करें। 7.        आसन करते समय शरीर पर कम से कम वस्त्र और ढीले होने चाहिए। 8.        आसन करते - करते और मध्यान्तर में और अंत में शवासन करके ,  शिथिलीकरण के द्वारा शरीर के तंग बने स्नायुओं को आराम दें। 9.        आसन के बाद मूत्रत्याग अवश्य करें जिससे एकत्रित दूषित तत्त्व बाहर निकल जायें। 10.    आसन करते समय आसन में बताए हुए चक्रों पर ध्यान करने से और मानसिक जप करने से अधिक लाभ होता है। 11.    आसन के बाद

ब्रह्मचर्य-रक्षा का मन्त्र

  ॐ   नमो भगवते महाबले पराक्रमाय मनोभिलाषितं मनः स्तंभ कुरू कुरू स्वाहा। रोज दूध में निहार कर 21 बार इस मंत्र का जप करें और दूध पी लें। इससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। स्वभाव में आत्मसात कर लेने जैसा यह नियम है। रात्रि में गोंद पानी में भिगोकर सुबह चाट लेने से वीर्यधातु पुष्ट होता है। ब्रह्मचर्य - रक्षा में सहायक बनता है।

स्वास्थ्य के लिए मंत्र

  अच्युतानन्त गोविन्द नमोच्चारणभेषजात्। नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।। हे अच्युत ! हो अनन्त ! हे गोविन्द ! इस नामोच्चारणस्वरूप औषध से तमाम रोग नष्ट हो जाते हैं ,  यह मैं सत्य कहता हूँ ,  यह मैं सत्य कहता हूँ .... सत्य कहता हूँ।  

आध्यात्मिक विद्या के उदगाता संत श्री आसाराम जी महाराज

  प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद संत श्री आसाराम जी महाराज आज समग्र विश्व की चेतना के साथ एकात्मकता साधे हुए एक ऐसे ब्रह्मज्ञानी महापुरूष हैं कि जिनके बारे में कुछ लिखना कलम को शर्मिन्दा करना है। पूज्यश्री के लिए यह कहना कि उनका जन्म सिन्ध के नवाब जिले के बेराणी नामक गाँव में ई . स . 1941 में वि . सं . 1998 चैत वद 6 को हुआ था ,  यह कहना कि उनके पिताश्री बड़े जमींदार थे ,  यह कहना कि उन्होंने बचपन से साधना शुरू की थी और करीब तेईस साल की उम्र में उन्होंने आत्म - साक्षात्कार किया था   –   इत्यादि सब अपने मन को फुसलाने की कहानियाँ मात्र हैं। उनके विषय में कुछ भी कहना बहुत ज़्यादती है। मौन ही यहाँ परम भाषण है। सारे विश्व की चेतना के साथ जिनकी एकतानता है उनको भला किस रीति से स्थूल सम्बन्धों और परिवर्तनशील क्रियाओं के साथ बांधा जाये ? आज अमदावाद से करीब तीन - चार कि . मी . उत्तर में पवित्र सलिला साबरमति के किनारे ऋषि - मुनियों की तपोभूमि में धवल वस्त्रधारी परम पूज्यपाद संतश्री लाखों - लाखों मनुष्यों के जीवनरथ के पथ - प्रदर्शक बने हुए हैं। कुछ ही साल पहले साबरमति की जो कोतरे डरावनी और भयावह थीं ,